yet another stupid poem or what ever you may call it
मेरी आवाज़ में
आवाज़ मिलाते रहिये |
हमने कल रात
जलाये थे जो दिए ,
उनकी लौ की रख को
हटाते रहिये |
नींद आती है तो
तक़दीर भी सो जाती है |
कोई अब सो ना सके, वह गीत गाते रहिये |
भूखा सोने को
तैयार है मेरा यह देश ,
आप परिंदे के ख़ाब
उसे दिखाते रहिये |
वक्त के हाथ में
फूल भी है, पत्थर भी है |
चाह फूलों की है
तो पत्थर भी खाते रहिये |
जाने कब आखिरी खत, आपके नाम आ जाये,
आपसे जितना बन
सके अनुराग लुटते रहिये |
समय ने जब भी
अँधेरे से दोस्तीं की है ,
जला के अपना घर , हमने रौशनी की है |
हाँ तुम,
" मेरी भावनाओ को
" और आप
भी इसी तरह मेरी
भावनाओ को पढते , सुनते रहिये |
मेरी आवाज़ में
आवाज़ मिलाते रहिये ,
भावनाए अगर दिल
तक पहुचे तो अपनी समझ अपनाते रहिये,
और अगर दिल तक
पहुंची तो अगले कुछ पल तक मुस्कुराते रहिये
|
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